फ़क़ीर कब मौत से डरते है !
-मंजुल भारद्वाज
फ़क़ीर
इंसानियत के हबीब
तानाशाह
इंसानियत के रक़ीब होते हैं !
फ़क़ीर
संसार के जाल को भेदते हैं
तानाशाह
अपने ही जाल में फंसते हैं !
मैं को मार
फ़क़ीर जन्मता है
मैं को पाल
तानाशाह मरता है !
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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