माटी
- मंजुल भारद्वाज
गर्भ में धारण कर
बीज में प्राण
ओतती है माटी
गुणसूत्र की तासीर को
नमी से सींचती है माटी
निराकार को आकार
देती है माटी
आकार साकार हो
निराकार होता है
निराकार को अपने
अंदर समा लेती है माटी !
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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