Sunday, December 25, 2022

आब –ऐ-हयात - मंजुल भारद्वाज

 आब –ऐ-हयात 

- मंजुल भारद्वाज

आब –ऐ-हयात   - मंजुल भारद्वाज



कहीं भीतर अंधड़ उठता है 

धुंधली धुंधली भाव मुद्राएं 

उड़ती धूल के कैनवास पर उभरती हैं !

विरह के बीहड़ो में 

उसके दीद का तसव्वुर

मीठा मीठा दर्द जगा जाता है !

दबे पाँव धुंधलके में 

उसका अहसास सूखे हलक में 

आब - ऐ - हयात सा उतर जाता है !

कहीं साफ़ साफ़ दिखने वाले मंजरों से 

यह धुंधलका बड़ा अच्छा है 

निराशा में एक आस जगाता है !

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