जुस्तजू
- मंजुल भारद्वाज
मेरे कोहरे को छांटती
हल्की धूप हो तुम !
पलकों से झरती
मर्म की शबनम हो तुम !
मेरी जुस्तजू
मेरे ख्वाबों की ताबीर हो तुम !
कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में कभी पिता की कभी भाई की कभी ...
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