आप ‘सत्य के प्रयोग’ से डरते हैं!
- मंजुल भारद्वाज
हाँ लोकतंत्र की ताक़त है बहुमत
लोकतंत्र की कमजोरी भी है बहुमत
जब बहुमत विवेक से उत्प्रेरित हो
तब ताक़त
और उन्माद से संचालित हो
तब कमज़ोरी
हाँ यह भारत का कटु आधुनिक सच है
सत्ता संख्या बल से मिलती है
चाहे वो विचारशील समाज हो
या वर्तमान में भूमंडलीकरण की
संचार तकनीक से लैस भेड़ों की संख्या
सत्ता इसी बहुमत से नीति
कानून और कार्यक्रम संचालित करती है
बिल्कुल संविधान सम्मत
साफ़ साफ़ ‘नोटबंदी’ की तरह
संविधान से प्राप्त मताधिकार से
भेड़ों ने चुनी है वर्तमान सत्ता
जी सहमत हूँ
यह सरकार संविधान सम्मत है
पर क्या विवेक सम्मत है?
आप संख्या में कम हैं
यह कुर्तक देकर अपनी
ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकते
जरा उदाहरण दें बताएं
दुनिया में गांधी कितने हुए
मार्टिन किंग लूथर कितने हुए
महात्मा फुले कितने हुए
सावित्रीबाई फुले कितनी हुईं
भगतसिंह कितने हुए
आंबेडकर कितने हुए
माई भागो कितनी हुई?
आप विचार को संख्या से तोलना बंद करो
हाँ यह सही है
यह ट्रोल करेंगें
चरित्र हनन करेंगे
अर्बन नक्सल का तमगा देंगें
जेल में ठूंस देंगें
राष्ट्रद्रोह का मुकद्दमा चलायेगें
गोली मार देगें
बिल्कुल ‘गांधी’ की तरह!
तो आप विचार का अलख
जगाना बंद कर देंगे
तर्क की मशाल बुझा देंगे
भीड़ गणपति की मूर्ति को
दूध पिलाती रहेगी
और आप जयकारा लगायेंगे
या विवेक की चेतना जगायेंगे
सच यह है की विचारक कम होते हैं
प्रचारकों का संघ होता है
झूठ सत्ता का प्रपंच है
सत्य कल्याण का मार्ग
और सच यह है की
आप ‘सत्य के प्रयोग’ से डरते हो
और ‘गांधी’ को गाली देते हुए
‘गाँधी’ के देश में रहना चाहते हो
तो जनाब आपसे बड़ा पाखंडी कोई नहीं है
उसी का प्रतिफल है की
आप भूमंडलीकरण से अभिशप्त
गोडसे के भारत में हो
इसे स्वीकार कर
गाँधी के भारत का निर्माण करो
या
गांधी के फ़ोटो पर माला डाल
संघ के संस्कारों की नींद में सो जाओ
निर्णय आपका है!
...
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