रचते हैं सृजनकार !
- मंजुल भारद्वाज
सृजनकार
सार्वभौमिक,सर्वव्यापी
चेतना से संपन्न होते हैं
जब 'मैं' जलकर
अपने भीतर ब्रह्मांड को
आलोकित करता है
तब सृजनकार उदित होता है !
जन की पसंद ना पसंद से परे
प्रकृति की मानिंद
बिल्कुल फूल और कांटे सा
सम स्थापित करते हुए
रचते हैं सृजनकार
जीवन दर्शन का शाहकार!
इस पल में युग
युग में पल जीते हुए
देह नश्वर है
जीवन शाश्वत
जन्म और मृत्यु से परे
जीवन के पैरोकार हैं सृजनकार !
वक्त,काल,समय
घड़ी को घड़ते हुए
ब्रह्म हैं सृजनकार
पहर की गोधूलि के
धुंधलके को
परिवर्तन के आईने में
तराशते हैं सृजनकार !
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