भीड़ कमल का फूल है
- मंजुल भारद्वाज
सत्य और असत्य
दोनों एक साथ चलते हैं
एक जैसे होते हैं
इनका फ़र्क सिर्फ़ दृष्टि करती है !
दृष्टि संपन्न होना
दुर्लभ होता है
इसलिए झूठ का बोलबाला है
सच समाधिस्त मौन है
जो लुट जाने के बाद
लोगों को समझ आता है !
कहां,कौन,कब
अन्याय से लड़ता है?
सब अपने पेट को देख
अपने लिए न्याय कर
अन्याय से समझौता कर लेते हैं
चाहे वो दिहाड़ी मजदूर हो
या सुप्रीम कोर्ट !
भीड़ अफ़वाहों पर पलती है
बारी बारी अपने को
स्वयं कुचलती है
विनाश भीड़ का मूल है
भीड़ हिंसा का शूल है
यही कमल का फूल है !
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