Thursday, March 31, 2022

कब होगा चुनाव एक पर्व ! -मंजुल भारद्वाज

 कब होगा चुनाव एक पर्व  !

-मंजुल भारद्वाज

कब होगा चुनाव एक पर्व !  -मंजुल भारद्वाज


झूठ,भ्रम,प्रपंच 

सिर्फ़ सत्ताधीशों का दर्प

जनता के लिए कब होगा 

चुनाव एक पर्व!

विकार का डंक 

भाईचारा डस गया 

हर भारतीय धर्म 

जात पात में फंस गया 

कब होगा भारतीय होने पर गर्व 

चुनाव होगा लोकतंत्र का पर्व !

पैसों का चारों ओर डंका बज गया

विचार भीड़ से सरेआम पिट गया 

कुचला गया चुनावी रैली में सत्य 

अमीरों का शगल चुनाव  

कब होगा सर्वहारा का पर्व !

बोध -मंजुल भारद्वाज

 बोध

-मंजुल भारद्वाज

बोध  -मंजुल भारद्वाज

स्पर्श,गंध,भाव

है जीवन बोध

मीत,प्रीत,रीत

है संसार बोध

आकर्षक,मोहक,अदा

है सौन्दर्य बोध

चाहत,सहवास,त्याग

है प्रेम बोध

ज्ञान,संज्ञान,विज्ञान

है दृष्टि बोध

दृष्टि जैसी सृष्टि

है संकल्प बोध

सत्य,निष्ठा,न्याय

है मानवता बोध

जड़,चेतन,जन्म

है सृजन बोध

निरिक्षण,धारण,सम्प्रेष्ण

है कला बोध

अर्पण,समर्पण,तर्पण

है मुक्ति बोध!

...

#बोध #मंजुलभारद्वाज

Wednesday, March 30, 2022

मजबूरी को इंकलाब बना दे! -मंजुल भारद्वाज

 मजबूरी को इंकलाब बना दे!

-मंजुल भारद्वाज 

मजबूरी को इंकलाब बना दे!  -मंजुल भारद्वाज

सार्वजनिक रुदन या हास्य को 

सरल भाषा में लिखे 

सरल रचना को 

आम जन समझें 

रचना लोकप्रिय हो जाए,बस! 

क्या इतना भर 

दायित्व है रचनाकार का?

या रचना आम अभिव्यक्ति के परे 

पाठक को बदलाव के लिए 

झकझोरे

उद्वेलित करे

उत्प्रेरित करे 

देशबंदी में  

पलायन करने को मजबूर 

मजदूरों की भीड़ देखिये 

एक डंडे के सामने 

गिडगिडाने वाले 

मेहनतकश हाथ देखिये 

एक रचना ऐसी हो 

जो इस भीड़ को 

समूह बना दे 

डंडे के प्रतिरोध का 

बिगुल बजा दे 

इनका रास्ता 

संसद की तरफ़ मोड़ दे 

मजबूरी को इंकलाब बना दे!

#मजबूरीकोइंकलाबबनादे  #रचनाकार #मंजुलभारद्वाज

49 प्रतिशत जनता बनाम 51 प्रतिशत भीड़ -मंजुल भारद्वाज

49 प्रतिशत जनता बनाम 51 प्रतिशत भीड़

-मंजुल भारद्वाज

49 प्रतिशत जनता बनाम 51 प्रतिशत भीड़  -मंजुल भारद्वाज

अपने आप को पत्रकार कहने वाली कौम का 

गज़ब चमत्कार 

मंहगाई,बेरोज़गारी,खेती को मुद्दा मानने वाली 

49 प्रतिशत जनता को दुत्कार 

वर्णवाद,पाखंड,धूर्तता के वशीभूत

विकारियों को सत्ता पर बिठाने वाली 

51 प्रतिशत भीड़ की जयजयकार !

पत्रकार कहलाने वाली कौम के साथ

हाँ में हाँ मिला रहे हैं बुद्धिजीवी 

सुर मिला रहे हैं तथाकथित प्रगतिशील

इन्हें लोकतंत्र की बस इतनी समझ है 

जिसके आंकड़े ज्यादा वही सरकार है !

इनके लिए नीति,प्रतिरोध,प्रतिपक्ष,जनसंघर्ष

जनसरोकार,संविधान सब बेकार हैं

बस सरकार की जयजयकार है 

यह 49 प्रतिशत जनता के 

विवेक और सरोकारों के हत्यारे हैं 

संघ की धूर्तता और फ़ासीवाद के नक्कारे हैं !

हिन्दू होने के भ्रम से निकल 

कैसे 49 प्रतिशत भीड़ जनता बनी

कैसे धर्म को चुनावी मुद्दा नहीं बनने दिया 

कैसे तानशाह और बुलडोज़र को घुटनों पर ला दिया 

यह उसके जज़्बे को नज़रअंदाज़ करेंगे  

यह चाटुकार कमर तक झुक 

ढोंगी की धूर्तता को सलाम करेंगे !

यह 49 प्रतिशत जनता ही

जवाबदेही,जनसंघर्ष,प्रतिरोध  

लोकतंत्र और संविधान की पैरोकार है

धर्मांध,फ़ासीवादी,विकारी संघ का जवाब है

मेरा इनको सलाम है !

Tuesday, March 29, 2022

विकास की सड़क पर गाँव पिट रहा है! -मंजुल भारद्वाज

 विकास की सड़क पर गाँव पिट रहा है!

-मंजुल भारद्वाज

विकास की सड़क पर गाँव पिट रहा है!  -मंजुल भारद्वाज

  

एक गाँव था 

एक मकान था 

एक गली थी 

मिडिल क्लास तक

एक स्कूल था 

हाई स्कूल के लिए 

दूसरे गाँव गया 

यूनिवर्सिटी के लिए 

शहर गया 

शहर से सीधे महानगर 

महानगर से देश विदेश 

गाँव का एक एक बच्चा 

अपनी दहलीज़ छोड़ता रहा 

डगर डगर नगर नगर 

भटकता रहा 

पेट की आग़ में जलता रहा 

कोई कलेक्टर बना 

कोई चाय बेचकर प्रधानमंत्री

सब अमीरों की सेवा में खप्प गए 

महानगरों के गंदे नालों पर 

झोपडी बसा पलते रहे 

धीरे धीरे भूमंडलीकरण 

गाँव पहुंच गया 

बचा खुचा खेत भी बिक गया 

सब नगरों महानगरों की 

भेंट चढ़ गया 

एक गांधी था जो 

ग्राम स्वराज लिख गया 

आज देश का कानून 

गाँव लौटते 

गांधी के गाँव वाले को

सड़क पर कूट रहा है 

जन जन सड़क पर लुट रहा है 

एक धर्मांध तानाशाह

राजमहल में टीवी पर 

रामायण देख रहा है 

गांधी मौन है 

जय श्रीराम का शोर हैं!

#गाँव #गाँधी  #मंजुलभारद्वाज

प्रतिष्ठा त्याग,संवाद की पहल करे बौद्धिक वर्ग ! -मंजुल भारद्वाज

 प्रतिष्ठा त्याग,संवाद की पहल करे बौद्धिक वर्ग !

-मंजुल भारद्वाज

संघ अपनी धूर्तता से 

देश की जनता को भीड़ बना 

विकारी सत्ता चला रहा है 

ऐसे विध्वंस काल में 

भारत का विवेकशील 

विचारवान वर्ग मूर्छित है 

विचारवान होते हुए भी 

विचारों को सम्प्रेषित करने के रूढ़िवादी

तरीकों और पद्धतियों में उलझा है 

विध्वंस की आग उनके 

घर द्वार तक पहुंच गई है 

लेकिन वो अपनी बौद्धिकता के 

ताबूत में कैद हैं 

अपनी प्रतिष्ठा को ढोए जाने का इंतज़ार कर रहे हैं

वो आदी हैं बुलाये जाने के 

वो आदी हैं बने बनाये मंच के 

वो आदी हैं समाज की सदाशयता के 

पर आज समाज नहीं भीड़ है 

सत्ता को विचार,सत्य और विवेक की ज़रुरत नहीं 

उसके पास भीड़ है 

भ्रम है 

भय,झूठ,पाखंड का तंत्र है 

ऐसे में प्रतिष्ठा ढोए जाने का इंतज़ार कर रहा बौद्धिक वर्ग

अर्थहीन होकर संघ का साथी बन

देश की तबाही का मौन तमाशबीन बना हुआ है

बौद्धिक वर्ग को अपनी प्रतिष्ठा को स्वाह कर 

विचार की लौ में जलना होगा 

उत्सव मूर्ति,शोभा के बुत बनने की बजाए 

जनसंवाद की नई पहल करनी होगी 

भीड़ को जनता बनाने के लिए

भीड़ के भ्रम को तोड़  

सत्य का मार्ग दिखाना होगा 

मृदुभाषी,शांत छवि को स्वाह कर 

विचार के तेज को ओज देना होगा 

गांधी होने का मतलब समझना होगा 

छवि के पिंजरे को तोड़ 

बड़ी प्रखरता से 

झूठ को झूठ कहना होगा 

भीड़ के पार अपनी आवाज़ को पहुँचाना होगा 

गांधी की तरह निडर होकर 

आत्मबल से नए नए सत्य के प्रयोग करने होंगे 

त्रुटी को सरेआम स्वीकारने का साहस जुटाना होगा 

आज गली गली,गाँव गाँव 

शहर दर शहर बौद्धिक वर्ग को 

सत्य,संविधान और विवेक का 

अलख जगाना होगा !

Friday, March 25, 2022

भीड़ कमल का फूल है - मंजुल भारद्वाज

 भीड़ कमल का फूल है

- मंजुल भारद्वाज

भीड़ कमल का फूल है  - मंजुल भारद्वाज


सत्य और असत्य 

दोनों एक साथ चलते हैं

एक जैसे होते हैं

इनका फ़र्क सिर्फ़ दृष्टि करती है !

दृष्टि संपन्न होना 

दुर्लभ होता है 

इसलिए झूठ का बोलबाला है

सच समाधिस्त मौन है

जो लुट जाने के बाद

लोगों को समझ आता है !

कहां,कौन,कब 

अन्याय से लड़ता है?

सब अपने पेट को देख

अपने लिए न्याय कर

अन्याय से समझौता कर लेते हैं

चाहे वो दिहाड़ी मजदूर हो

या सुप्रीम कोर्ट !

भीड़ अफ़वाहों पर पलती है

बारी बारी अपने को 

स्वयं कुचलती है

विनाश भीड़ का मूल है

भीड़ हिंसा का शूल है

यही कमल का फूल है !

क्यों? - मंजुल भारद्वाज

क्यों?

- मंजुल भारद्वाज

क्यों?  - मंजुल भारद्वाज


सुबह मंदिर में घंटी बजा कर

राम राम भजते हो

धर्म रक्षा का शंख बजाते हो

आप पर अधर्मी राज  करते हैं

क्यों इसका विचार नहीं करते?

क्योंकि आस्था की अंधी गह्वर

आपकी तर्क शक्ति को मूर्छित कर देती है

आप ना धर्म की रक्षा कर पाते हो 

ना राम से जुड़ पाते हो 

बस कर्मकाण्ड के चक्रव्यूह में उलझ 

शरीर छोड़ जाते हो !

आप स्कूल जाते हो

कॉलेज,यूनिवर्सिटी में 

सालों साल शिक्षा प्राप्त करते हो

नौकरी करते हो 

पर किसकी नौकरी करते हो?

अनपढ़ आप पर राज करता है

अनपढ़ आपके लिए शिक्षा नीति बनाता है

आप कभी विचार नहीं करते की

अनपढ़ क्यों आप पर राज कर रहा है? 

क्योंकि आपने शिक्षा पेट भरने के लिए पाई है

विचार करने के लिए नहीं !

आप व्यापार करते हो 

जुगत लगाते हो 

ग्राहक को लुटते हो

खुशहाल रहते हो 

लुटेरा आप पर राज करता है 

वो आपको लूटकर चुनाव लड़ता है 

आप कभी क्यों नहीं सोचते की 

आप व्यापार नहीं करते

लूटने और लुट जाने का धंधा करते हो?

अध्यात्म से जुड़ते हो 

सत्य खोजने का प्रण करते हो

पर क्यों नहीं सोचते ?

झूठा आप पर राज करता है 

क्योंकि आप सार्वजनिक  सत्य और शांति को नहीं

व्यक्तिगत सच को शांति समझते हो 

अपने लिए जीता हूं को सच मान 

सुख की कल्पना करते हो 

आप भ्रम और पाखंड के शिकार हो 

आप समाज,देश,दुनिया के बोध से अनभिज्ञ हो

सच और शांति व्यक्तिगत नहीं सार्वभौमिक होते हैं !

अधर्म ,अनपढ़ , हिंसक और झूठों के राज में जीते हुए

धर्म,शिक्षा,अहिंसा और सच को खोजते हो

पर सच ,न्याय , समता का राज नहीं स्थापित करते

क्यों ?

Thursday, March 24, 2022

अहिंसा का पथ - मंजुल भारद्वाज

 अहिंसा का पथ 

- मंजुल भारद्वाज

अहिंसा का पथ   - मंजुल भारद्वाज

एक जासूस ने युद्ध छेड़ा है

एक व्यापारी देख रहा है

एक तानाशाह मौन है

मानवीय अधिकारों 

सभ्यताओं के पैरोकार 

बिलबिला रहे हैं 

बम धमाकों, मिसाइलों से

बरसती आग 

इंसानियत को भस्म कर रही है

नोबेल और आइंस्टाइन अपनी कब्र से 

विज्ञान लीला देख रहे हैं

लाचार,लचर,बेबस संयुक्त राष्ट्र संघ

अपनी निरर्थकता का परचम लहरा रहा है

सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट के अपने आकलन पर

डार्विन मुस्कुरा रहा है !

जासूस अणु बम की धमकी दे रहा है

टॉलस्टाय,चेखव,गोर्की अपनी रचनाओं के

फंदों में झूल रहे हैं

रूजवेल्ट मुस्कुरा रहा है

नाकासाकी ,हिरोसिमा की रूहें कांप रही हैं

हिंदू राष्ट्र का तानाशाह

जासूस के तेल की बूंदों से स्नान कर 

शांति सन्देश दे रहा है

दुनिया भर में रूपर्ट मर्डोक का मुनाफाखोर मीडिया

युद्ध में मुनाफा कमा

दिवाली मना रहा है !

आधुनिक सभ्यताओं के खोखलेपन 

और विज्ञान के हिंसक रूप को

गांधी समझ चुके थे

हिंसा मुक्ति नहीं देती 

इंसानियत को खत्म करती है के मर्म को जान चुके थे

युद्ध में उलझी हिंसक लाशों को

गांघी विवेक ज्ञान के आलोक में

अहिंसा का पथ दिखा रहे हैं !