हर रात का सवेरा है !
-मंजुल भारद्वाज
पानी होते हुए नदी प्यासी है
भरा समन्दर खारा है
साहिलों के लिए तड़पता है
किनारे मझदार को तरसते हैं
प्यार भरे दिल
एक दूजे के लिए भटकते हैं
कहीं बाहरों का गुलशन है
कहीं जज़्बातों का कारवां
सहराओं में भटकता है
बात बड़ी सीधी सरल है
भेद बड़ा गहरा है
ख़ुशी की चाह जीवन है
गमों की हर रात का सवेरा है!
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