Thursday, November 7, 2019

प्रतिरोध का प्रलाप! - मंजुल भारद्वाज

प्रतिरोध का प्रलाप!
- मंजुल भारद्वाज
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
सत्ताधीश के झूठ,पाखंड,मल
मवाद का प्रचार करने के लिए
सब कुछ बेच देना ही पत्रकारिता हो
भारत में लोकतंत्र का बिका हुआ
चौथास्तम्भ जब हर पैसेवाले का
सुलभ शौचालय हो
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
राजनैतिक परिदृश्य बदलने वाले
सिर्फ़ आंकड़ों को अपना हथियार मानते हो
जब इस देश के इतिहास में लिखा हो
युधिष्ठिर भी आंकड़ों के खेल में हार गया था
चेतना,दृष्टि शून्य आंकड़े राजनीति के अखाड़े में
निरर्थक और आत्मघाती होते हैं
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
साहित्य के नीरो
कवि,कहानीकार,स्तम्भकार
रंगकर्मी,नाटककार
देश की बर्बादी पर
लिखने की बजाय
सत्ताधीश की स्तुति में
एक दूसरे को आदरणीय के सम्बोधन से
शब्दों की बासुंरी बजा रहे हों
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
करवाचौथ के चाँद की महिमा मंडन में
नारीमुक्ति का परचम
पितृसत्ता के पाँव में मुक्ति खोज रहा हो
भारतीय परम्परा,संस्कृति और संस्कार के
नए अवतार नींबू का डंका
पूरी दुनिया में बज रहा हो
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
जनता एक दूसरे की बर्बादी का
तमाशा देख रही हो
किसानों की आत्महत्या का जश्न
बेरोजगार युवा राष्ट्रवाद के
उन्माद में मना रहे हों
एक बैंक के डूबने वाले
खाताधारकों के विनाश का जश्न
दूसरे बैंक के खाताधारक
इस बात से मना रहे हों
हमारे वाला नहीं डूबा
प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन है जब
देश के स्वर्ग की बर्बादी का जश्न
वहां मिलने वाले प्लाट में हो
सत्ताधीश हर रोज़ चुनाव के लिए
सरहद पर सैनिकों की बली ले रहा हो
और
देश बाज़ार में मिलने वाले छूट से
दिवाली की खरीदारी कर रहा हो
तब प्रतिरोध का प्रलाप अर्थहीन हो जाता है !

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#प्रतिरोध #राजनीति #साहित्य #पत्रकारिता #मंजुलभारद्वाज

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