Saturday, November 9, 2019

ना धर्म ना जात,ना देस ना भेस! -मंजुल भारद्वाज

ना धर्म ना जात,ना देस ना भेस!
-मंजुल भारद्वाज
अपने होने का साक्ष्य
अपने को जन्मने के
प्रतिबद्ध प्रचंड आवेग से
शुक्राणु अपने कोष को त्याग
जा मिलता है अंडाणु से
अपने पूर्णत्व के लिए
एकाकी प्यास आग
संवेदना एक स्पर्श से
विलीन हो जाती हैं
एक दूसरे में
आत्मा को धारण करते हुए
एक जीव की प्रतिकृति हेतु
अपनत्व का त्याग
दूसरे की स्वीकार्यता
अनिवार्य है सृजन के लिए
यही सम है
यही समावेश
यही दृष्टि,यही सृष्टि
अपने जन्मने की प्रकिया
मनुष्य भूल जाता है
तब धर्म,जात,भाषा
देस और भेस का भेद उभरता है
जो धकेल देता है
मनुष्य को विध्वंस के
विकराल भयावह गह्वर में
जहाँ वो लीलता है
अपनी प्रकृति और मनुष्यता को!
#धर्म #जात #देश #भेष #मंजुलभारद्वाज

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