अपने तल और तलहटियों में झांकिए !
- मंजुल भारद्वाज
जल में मल है
गंध है, दुर्गन्ध है
नफ़रत है, हिकारत है
वैमनस्य है,जहर है
आज समाज की तलहटी में
मानवीय मूल्यों का तल
ढका है कीचड़,लालच
क्रूरता,हत्या और फ़रेब से
आँखों में प्रेम नदी का तल
सरस्वती की तरह विलुप्त है
गंगाजमुनी तहजीब अभिशप्त है
दुर्योधन,दुशासन,धृतराष्ट्र के युग में
काल प्रतीक्षारत है किसी द्रौपदी के प्रण का
तय होना है की धर्मयुद्ध आप स्वयं लडेंगें
या अवतार का इंतज़ार करेगें!
अपने तल और तलहटियों में झांकिए
क्या पता कोई कृष्ण
गाय चराते हुए,अपनी बंसी पर
प्रेमधुन बजा रहा हो!
...
#तल #तलहटी #मूल्य #मंजुलभारद्वाज
No comments:
Post a Comment