हूक
- मंजुल भारद्वाज
नाभि में एक हूक उठती है
रीढ़ से होती हुई सिरहन
मस्तिष्क में आ पसरती है
कब,कहाँ,क्यों
क्या घटता है?
नियति है? या
सृजन चुनौती
या
काल को गढ़ने की परीक्षा
विविध भावरंगों के भंवर में
घूमता मस्तिष्क
अपने किनारों को तलाशता हुआ!
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