क्या चुनाव सिर्फ़ नेता का भाषण भर है?
-मंजुल भारद्वाज
क्या चुनाव का मतलब
नेताओं की रैलीयाँ
भाषण और भीड़ की तालियाँ भर है?
क्या चुनाव मुनाफाखोर
मीडिया का विज्ञापन भर है?
क्या चुनाव प्रीपोल सर्वे
और उस थूक बिलोते तथाकथित
चुनावी पंडितों की चक्कलस भर है?
क्या चुनाव पूंजीपतियों का
सट्टा बाज़ार है भर है?
क्या चुनाव पूंजीपतियों का
मुनाफ़ा वायदा कारोबार है?
या
चुनाव जनता के दुःख दर्द
निवारण का नीतिगत जनमत है
क्या जनता को भीड़ में
सिर्फ़ तालियाँ बजानी हैं
या सरकार से हिसाब भी लेना है?
हर चुनावी प्रतिनिधि से
दृष्टिपत्र पर विमर्श करना है
या सिर्फ़ जयकारा करना है
क्या जनता ने चुनाव को समझा है
या जनता नेता,भीड़, भाषण
रैली,टीवी की नकली बहस के
षड्यंत्र के चक्रव्यूह में उलझी है?
जनता को अपना भविष्य
स्वयं लिखना है
नीतिगत विचार विमर्श करना है
अपने मुद्दों पर मनन,मंथन कर
झूठे,फ़रेबी जुमलों की बजाए
नीति,स्वयं,प्रेम और सौहार्द को चुनना है!
….
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