कलात्मक आविष्कार
-मंजुल भारद्वाज
दृष्टि को तरंगित
अमूर्त को मूर्त कर
दर्शक को अद्भुत
आत्मिक कलात्मक
अनुभूति और आनंद से
सराबोर करती है
उसे जीवन चुनौतियों से
पार जाने के लिए
सत्य,अहिंसा के इंसानी
पथ दिखलाती है !
कलात्मक आविष्कार
किसी मशीनी पद्धति से नहीं होता
सतत मनन मंथन
समर्पण से होता है
जिसके विश्लेषण से
एक पद्धति का निर्माण होता है
पर पद्धतियाँ सिर्फ़ कला के
मुहाने तक ले जाती हैं
सृजन महासागर में नहीं डुबाती
सृजन महासागर में पैठने का
मात्र एक ही मार्ग है
दृष्टि सम्मत जुनून
समर्पण,निष्ठा और
प्रकृति सम्मत विवेक !
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