Wednesday, January 4, 2023

कुर्बानी की राह अकेली होती है -मंजुल भारद्वाज

 कुर्बानी की राह अकेली होती है

-मंजुल भारद्वाज
कुर्बानी की राह अकेली होती है  -मंजुल भारद्वाज


कुर्बानी की राह
अकेली होती है
भोग - प्रसाद की राह में
भारी भीड़
लंबी कतार में
सदियों से दिन रात रेंगती है !
हाकिम के आगे
हाथ पसार भीख से
पेट भरती है
हाथों की मुठ्ठी बना
लुटेरे से अपना हक नहीं मांगती !
सदियों तक इंतज़ार करती है
कोई आएगा
कुर्बानी के पथ पर
अपनी कुर्बानी से
इस भीड़ को गुलामी से
आज़ाद करायेगा !
युगों युगों से दासता के
चक्रव्यूह को भेदता कोई इंकलाबी
सूर्य की मानिंद
रौशन करता है
अंधी गह्वर को
सवेरे आज़ादी के
सांस लेते हैं
चन्द रोज़
फिर दासता की रात में सो जाते हैं !
आजादी मुफ़्त नहीं मिलती
प्रसाद मुफ़्त मिलता है
आजादी कुर्बानी मांगती है
भीड़ हक के लिए नहीं लडती
भीख मांगने को मोक्ष समझती है !
आज देश में भीड़ है
युवाओं की
महिलाओं की
किसानों की
भक्तों की
पिंजरे में क़ैद मध्यवर्ग की
दिहाड़ी मज़दूरों की
जो नौकरी के लिए
अस्मिता के लिए
न्यूतम समर्थन मूल्य के लिए
राम राज के लिए
विकास के लिए
पेट भरने के लिए
खड़े हैं लंबी कतारों में
लुटेरे के सामने
हाथ फैलाए !
पर कोई हाथ मुठ्ठी नहीं बनता
कोई गांधी की तरह नहीं चलता
कोई भगत सिंह की तरह
फांसी का फंदा नहीं चूमता
अपनी आजादी के लिए
अपने मुख से नहीं बोल पाता
इंकलाब ज़िंदाबाद !
बस प्रसाद की लाइन में खड़ा
आरती गा रहा है
लुटेरे की !
राह आज़ादी की
अकेली होती है
सुनसान होती है
इस राह में खड़े पथिक
बाट मत जोह
बस निकल
आगे बढ़
अपना मुस्तक़बिल
खुद लिख
रंग दे बसंती
गाता चल
सुनसान राहों को गुलज़ार कर
कुर्बानी तेरी बाट जोह रही है
चन्द पल के लिए ही सही
आज़ादी का सवेरा रौशन कर !

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