Sunday, January 1, 2023

मिलन का जश्न -मंजुल भारद्वाज

 मिलन का जश्न 

-मंजुल भारद्वाज
मिलन का जश्न   -मंजुल भारद्वाज


मिलन का जश्न 
ऐसे अदा-अंदाज़ से 
मनाती हैं लहरें
किनारे को चूमकर 
अपना नमक छोड़ जाती हैं !
लहरें इठलाती-मदमाती 
अपने आशियां में लौट जाती हैं 
किनारा वहीँ का वहीँ 
प्रतीक्षारत रहता है 
मिलन की हसरत लिए !
चाँद और वसुंधरा की अटखेलियाँ हैं 
किनारे और लहर का विरह–मिलन
समंदर का ज्वार-भाटा 
है सतत,निरंतर,अविरल !

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