संत माफ़ करें !
-मंजुल भारद्वाज
बड़ी विकट पहेली है
संतों की सहेली है
तैरते लोभ,लालच
अज्ञान को ज्ञान का पथ दिखलाते हैं
पर मौला, अल्लाह
ईश्वर के फेर में उलझा
उसे अंधी गह्वर में धकेल जाते हैं !
कहाँ कबीर पाखंड पर
कहते कहते खुद पाखंड हो गये
पत्थर पूजने से नहीं
गुरु ज्ञान से गोविंद मिलते हैं
कहते कहते ना गुरु को समझा पाए
ना गोविंद को !
तुलसी वर्णवाद के शिकार हुए
तिरस्कृत,बहिष्कृत हुए
पर राम को रचते रचते
विकारी सत्ता का हथियार हो गए
तुलसी के सियावर राम
विकारियों के जय श्री राम हो गए !
भौतिक ज्ञान के आगे
प्रकृति का अथाह ज्ञान
हमारे आस पास तैरता रहता है
जिसे मैं सृजन तरंग कहता हूँ
पर पाषाण युग की ईश्वरीय संकल्पना को
मैं स्वीकार नहीं कर पाता
और
संतों के योगदान को
सांप सीढ़ी के खेल पाश में
फंसा हुआ पाता हूँ !
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