Sunday, July 17, 2022

ख़्वाब कांच के नहीं होते - मंजुल भारद्वाज

 ख़्वाब कांच के नहीं होते

- मंजुल भारद्वाज

ख़्वाब कांच के नहीं होते - मंजुल भारद्वाज


इस भ्रम को निकाल दीजिये

ख़्वाब कांच के नहीं होते

ज़िंदा हाड़ मांस की चेतना से

जन्मते हैं सपने

आँखों में चुभते नहीं

पलकों में सजते हैं

टूटते हैं,बिखरते हैं

तब दर्द उपजाते हैं

आखों में जमीं धूल हटाते हैं

नमकीन जल के ज्वार भाटा में

खूब बरसते हैं

साहिल से टकराते हैं

आपके कवि-कथा रूप को

गढ़ते हैं

संजीदा हो दृष्टि बदलते हैं

आत्म संघर्ष की लौ जलाते हैं

ख़ुद के बिखरे टुकड़ों को जोड़

एक नया व्यक्तित्व रचकर

नया इतिहास बनाते हैं

आपको आपकी नज़रों में

पुन: सजाते हैं

पूरे होने पर

आपको अमर कर जाते हैं

सपने ही अपने होते हैं !

#ख़्वाबकांचकेनहींहोते #मंजुलभारद्वाज

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