यह माटी मिलावटी है
-मंजुल भारद्वाज
तत्काल उपयोगिता की क्षमता है
दीर्घकालीन क्षमता का क्षय है
द्वेष,नफ़रत सिंचित यह माटी
अब प्रेम,ममत्व,बन्धुत्व नहीं जनती
शत्रुता,हिंसा और वर्चस्ववाद को जन्मती है !
यह माटी अब इतिहास नहीं लिखती
जो लिखा है
रचा है
बसा है
उसे विकृत कर
उजाड़ रही है !
यह माटी अब अपबा पुन: निर्माण नहीं करती
यह अब प्रकृति के चक्र को लांघ चुकी है
दुनिया की सबसे खूबसूरत थाती
अब प्लास्टिक बन चुकी है यह माटी !
यह माटी अब रिश्ते नाते नहीं बनाती
नहीं पालती
नहीं संवारती
यह माटी अब सिर्फ़ मतलब साधती है !
यह माटी अब अपने रक्षक पैदा नहीं करती
मनुष्य को खाने वाले
नरभक्षी पैदा करती है
जो लीलते रहते हैं
अपनी जननी,राष्ट्र
प्राकृतिक सम्पदा
समाज,संस्कृति को
विकराल,विक्षिप्त अंत तक !
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