तुम्हें क्या हो गया?
-मंजुल भारद्वाज
लहू का रंग एक था
अब वो तक़सीम हो
भगवा और हरा हो गया
खूब होली खेली
सियासतदानों ने
हिन्दू और मुसलमान के लहू से
सत्ता के लिए
इंसानियत जला दी
कतरा कतरा सिसकता रंग
पूछता है अवाम से
ऐ राम और रहीम के बंदो
मोशा तो वहशी दरिंदा है
अहल-ए-वतन के रखवालोंतुम्हें क्या हो गया?
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