मन मंच पर घटित!
-मंजुल भारद्वाज
विविध रंगों
उनके भावों
सपनों के
घर,खिड़की
दर,दरीचों
आंगन,गलियारों में
महकते,बहकते मौसम
समाज को अपने
चक्र पर घूमाता काल
जन्म और मौत के
फ़ासले की यात्रा के
मन मंच पर घटित
जीवन का कर्म हूँ
मैं रंगकर्म हूँ!
.......
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