Saturday, November 9, 2019

चल बंजारन ले चल - मंजुल भारद्वाज

चल बंजारन ले चल
- मंजुल भारद्वाज
एक ठौर सुहाती नहीं
खूंटे पर बंधी जिंदगी
रास आती नहीं
जिंदगी बंजारन है
कहीं रूकती नहीं
अपनी धुरी पर
गतिशील है वसुंधरा
किसी तरह की जड़ता
मन को भाति नहीं
मैं बन का जारा
फिरूं जग सारा
गाऊं जीवन गीत
लिए बंजारन की प्रीत
काले काले कजरारे
नयनों में ख़्वाब सा तैरता
सुंदर मुखड़े के
नक्श निहारता
लय,ताल से सधा
गठीला बदन
बिना जोर जबरदस्ती के
जब अपनी मर्जी से
मोहक अदाओं की छटा बिखेर
चमकती चांदनी को मदमाता है
तब अपने आप बंजारा होने का
गुरुर आ जाता है
सभ्यता के नाम पर
बसे शहरों की घुटन
हिंसा,खून खराबे
बलात्कार की चीत्कारों से
अच्छा है अपना बन
चल बंजारन ले चल
अपने बंजारे को
इस पढ़ी लिखी दुनिया से
कहीं दूर
अपने बन में
जहाँ प्रेम ही प्रेम हो!
#बंजारन #मंजुलभारद्वाज

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