Tuesday, July 23, 2019

सत,सूत और सूत्र - मंजुल भारद्वाज

सत,सूत और सूत्र
- मंजुल भारद्वाज 
अचंभित करने वाला 
भ्रमित दौर है 
‘लोकतंत्र’ संख्या बल का शिकार हो गया 
पैसा और जुमला हावी हो गया
‘विवेक’ और विनय पर अंहकार छा गया

संविधान, तिरंगा खिलौना हो गये 
अपने अपने रंग में सब नंगे हो गए 
भगवा,हरा,लाल और नीला 
चुनकर सब निहाल हो गए 
इन्सान और इंसानियत लहूलुहान हो गए

भारत की विविधता के विरोधाभास
स्वीकारने का साहस,
गांधी का उपहास हो गया 
बनिया है,बनिया है के शोर में 
हर भारतीय से संवाद एक सौदा हो गया 
सत्य के प्रयोग भ्रम हो गए 
खुलापन और सबकी स्वीकार्यता 
गाँधी के पाखंड हो गए

जिनको चाहिए था बस अपना 
तुष्ट हिस्सा 
वो तुष्टीकरण का शिकार हो गए

आज़ादी का जश्न मातम हो गया 
गांधी के चिंतन की चिता पर 
अपने अपने रंगों की ताल ठोक 
पूरी युवा पीढ़ी को भ्रमित कर 
कई राम,कई अम्बेडकर और 
कई मार्क्स की सन्तान हो गए

अस्मिता,स्वाभिमान और पहचान
के नाम पर जपते हैं अपने अपने 
भगवान की माला 
और आग लगाते हैं उसी धागे को 
जो जोड़ता है,पिरोता है 
एक सूत्र में विविध भारत को 
अपने सत और सूत से 
जिसका नाम है ‘गांधी’!...


#गाँधी #मंजुलभारद्वाज

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