एक और भगवान का घर !
- मंजुल भारद्वाज
कहा जाता है
हर जगह ईश्वर है
फ़िर उसे झूठला दिया जाता है
मंदिर ,मस्जिद,गिरजाघर को
भगवान का घर बताया जाता है
यह बताने वाला कौन है?
उसकी बात मानने वाले कौन हैं?
बताने वाला शोषक है
मानने वाले शोषित !
शोषक और शोषित दोनों
भगवान के जन्मदाता हैं
शोषक भगवान के नाम से
शोषण करता है
शोषित शोषण से मुक्ति के लिए
भगवान के सामने हाथ फैलाता है
ना शोषक शोषण बंद करता है
ना शोषित शोषण मुक्त होता है
हां मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर
मालामाल हो जाते हैं
यहां कोई सवाल नहीं पूछता
भगवान को दौलत की क्या ज़रूरत
पर सवाल हक़ की आवाज़ है
और भगवान के खिलाफ़
कौन आवाज़ उठाता है?
एक विशेष जगह को
भगवान का घर बताने वाला
शोषक है ब्राह्मण
जो ईश्वर,वर्ण,धर्म के नाम से
शोषणकारी व्यवस्था का निर्माण करता है
गरीब अपना पेट काट कर
भगवान के घर की दानपेटी भरता है
दानपेटी ब्राह्मण को अपराजेय बनाती है
ब्राह्मण अपने शोषण की नीति बनाता है
नियम बनाता है
भगवान के घर पर एकाधिकार रखता है
शोषित ब्राह्मण के पास जाकर
शोषण मुक्ति के उपाय पूछता है
ब्राह्मण उसे भगवान के घरों की
अनंतकालीन प्रक्रिमा का उपाय बताता है
शोषित अनंतकाल से भगवान के घरों की परिक्रमा कर
दानपेटी भर रहा है
ब्राह्मण अमर हो रहा है
शोषण बढ़ रहा है !
शोषित भगवान के घर की
वास्तुकला का गुणगान करते है
वास्तु भव्य होती जा रही है
शोषण चक्र बढ़ता जा रहा है
जितना शोषण बढ़ रहा है
उतना ही शोषित भगवान के घर की
परिक्रमा कर रहा है
एक एक ईंट लेकर
भगवान का घर बना रहा है
शोषित की पीढ़ी दर पीढ़ी
दान पेटी भर रही है
भगवान के घर की सीढ़ियां घस गई
पर शोषण नहीं मिटा
शोषित भगवान के घर को
शोषण मुक्ति की उम्मीद मानता है
उम्मीद उसे जिलाए रखती है
शोषण मुक्त नहीं करती !
भगवान की इन सीढ़ियों पर
ना जाने कितनी सिसकती
तड़पती उम्मीदों
दुआओं
मन्नतों ने दम तोड़ा है
पर शोषण नहीं मिटा
हां शोषक के अच्छे दिन आ गए
दानपेटी मतपेटी में बदल गई
संविधान को सलीब पर चढ़ा
न्याय देने वाले ने
एक और मंदिर बनाने का फैसला दे
ब्राह्मण को पुन: अपराजेय बना दिया !
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