सांस चल रही है
-मंजुल भारद्वाज
बिखरती है
संवरती है
तेरी जुल्फ़ों सी
ज़िंदगी भी !
करवटें बदलती है
अदा के नमक से
जुदा ज़िंदगी !
बस शरीर ढो रही है
परम्परा सी
सांस चल रही है
व्यवहार निभाते हुए !
भला इश्क़
बिना इबादत
कहाँ होता है !
#ज़िंदगी #इश्क़ #मंजुलभारद्वाज
No comments:
Post a Comment