Saturday, July 16, 2022

गुदड़ी -मंजुल भारद्वाज

 गुदड़ी 

-मंजुल भारद्वाज

गुदड़ी  -मंजुल भारद्वाज


मेरा मन 

तुझमें जा बसता है 

दिनभर जीवन यथार्थ को साधता है 

रात को तुमसे लिपट कर सो जाता है 

नए अर्थ की तलाश में 

रात भर मन भावन ख़्वाब बुनता है 

एक एक ख़्वाब अपना अपना रंग लिए 

तेरा श्रृंगार करता है 

रंग लेती है तू उसे अपने रंग में 

तेरे रंगों में लिपटा

वो घूमता रहता है

अपने मन को खोजते हुए 

अपने मन का जीवन जीने के लिए 

अपने मन का संसार 

अपने मन का जीवन 

अपने मन की कृति 

अपने मन का संसार 

अपने मन की कृति 

संस्कृति !

क्या है संस्कृति ?

समय के थपेड़ों को सहते हुए 

या समय को सहेजते हुए 

तार तार हुए अपने चिथड़ों को गुंथकर 

जीवन का सार समेटे हुए एक रहस्य

अपने आप अपना भेद खोलती

अपने होने की  

अजर अमर कथा गाती 

एक गुदड़ी !


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