Friday, November 1, 2019

ज़िंदगी के गुलिस्तां में ..... मंजुल भारद्वाज

ज़िंदगी के गुलिस्तां में
..... मंजुल भारद्वाज
ज़िंदगी के गुलिस्तां में
अनायास कोई एक लम्हा
छलक उठता है
मचल उठता है
महक उठता है
अपनी तमाम यादों के साथ
जी उठता है , सजग हो उठता है
सराबोर कर देता है
सुस्त पड़ी ज़िंदगी को
अपनी तारो ताज़गी से
... ज़िंदगी के गुलिस्तां में
ताज़गी के स्नान से
हूक उठती है
ज़िंदगी को नए सिरे और
संकल्पों के साथ जीने की
... ज़िंदगी के गुलिस्तां में

#ज़िंदगी #गुलिस्तां #मंजुलभारद्वाज

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