मनोरोगियों की बहस का पाखंड
-मंजुल भारद्वाज
आज गांधी के सूत
भगत की कुर्बानी
अम्बेडकर के संविधान
और
नेहरु के लोकतंत्र में
कलफ़धारी खादी के पोशाकों की नुमाइश होगी
बहस का पाखंड अपने चरम पर होगा
रोगी-मनोरोगी के तर्क-कुतर्क का ढ़ोंग
राष्ट्र के सामने लाइव पेश होगा
आत्म मुग्ध तानशाह झूठ से
करेगें तार तार संसद की मर्यादा को
भक्त मेज पीटते हुए
जयश्रीराम का जयकारा लगायेंगें
संसद की सरपंच सरकार की
कठपुतली की भूमिका सारे नियमों को
ताक़ पर रखकर निभायेंगी
विश्वास – अविश्वास का खेल
‘नीति’ की बजाए आंकड़ों की
बिसात पर होगा
जहाँ लोकत्रंत्र के ठेकेदार
मलाई देखकर रंग बदलेगें
विकास खूब गरजेगा
बस किसान की आत्महत्या
महिलाओं की सुरक्षा
युवाओं के रोज़गार
साम्प्रदायिक हाहाकार पर
होगा सन्नाटा
स्वतंत्रता सेनानियों के बुतों को निहारते हुए
संसद के किसी कोने में पड़ा लोकतंत्र
‘खामोश’ करहाता रहेगा
व्यक्तिवाद में आकंठ डूबा मनोरोगी
56इंच का सीना लिए
फिर जुमलेबाजी के रिकार्ड रचेगा
आत्महीनता से ग्रस्त मनोरोगियों की भीड़
राष्ट्र को लिंचतन्त्र में बदलती रहेगी
न्याय का ‘दीपक’ राम के नाम जलेगा
और फूंक डालेगा संविधान की आत्मा को
देशवासियों की आह आसमान से टकराएगी
आसमान खूप रोयेगा
मध्यमवर्ग खूब नहायेगा ‘सुहाने’ मौसम में
मीडिया की मंडी में नेशन वांट टू नो का
बाज़ार सजेगा
चोरों ओर शोर ही शोर होगा
संवाद और विवेक का गला घोंटता हुआ!
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