Saturday, July 16, 2022

ज़िंदगी - मंजुल भारद्वाज

 ज़िंदगी

- मंजुल भारद्वाज

ज़िंदगी  - मंजुल भारद्वाज


समय को बुनती हुई

धुन है ज़िंदगी 

धुंध की चादर ओढ़े

अपना सहर खोजती हुई !

मर्मस्पर्शी स्मृतियां से

जुगनू सी रौशन ज़िंदगी

भविष्य के गर्भ में जा पैठती है

सूर्य का सृजन करती हुई !

भावों की गीली मिट्टी से

गढ़ती है अपना मानस

विवेक,विचार,मर्म से 

संवरती है ज़िंदगी !


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