सकारात्मक तरंगों के घेरे
- मंजुल भारद्वाज
विेखंडित दिशाहीन तरंगों को
सकारात्मक घेरों में प्रवाहित कर
प्रतिध्वनि को गुंजायमान किया
प्रतिध्वनि के नाद से
अहसास का स्पंदन सम्प्रेषित हुआ
मैं कौन,कहाँ,कब हूँ
कहाँ होऊंगा का चित्र
मस्तिष्क में विचरण होने लगा
जाग्रत होती चैतन्य अवस्था ने
हुँकार भरी
हम हैं!
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